जो विगत इतिहास के पन्नो में जाकर सो गया था
चेतना की झील के गहरे भंवर में खो गया था
पुष्प जिन स्मृतियों के हम विसर्जित कर चुके थे
भाव श्रद्धा के जिन्हें हम सब समर्पित कर चुके थे
हो गया था इक जमाना जिसकी बीती बात को
नींद से उसने जगाया आज आधी रात को
महक मधु स्मृतियों की ऐसी सांसों में समायी
जैसे मादक सुरभि कोई सीधी चन्दन बन से आई
गीत गूंजे निर्झरों के हर तरफ वातावरण में
रंग सारे भर गया मधुमास फिर पर्यवारण में
दे गया दो प्राण फिर मेरे हृदय आघात को
नींद से उसने जगाया आज आधी रात को
पाट ना पाया विषमता की कोई इन खाइयों को
हम पकड़ते रह गये बस दौड़ती परछाईयों को
छीन लो तुम सारी दौलत यह मेरे सारे खजाने
पर मुझे लौटादो फिर से प्यार के दो पल सुहाने
मिल गया फिर एक सावन नैयनो को बरसात को
नींद से उसने जगाया आज आधी रात को
सुभाष मलिक
it is good efforts
ReplyDeleteit is a very nice poem
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