Wednesday, September 22, 2010

आधी रात को

जो विगत इतिहास के पन्नो में जाकर   सो गया था
चेतना की झील     के    गहरे    भंवर में खो गया था
पुष्प जिन स्मृतियों   के   हम विसर्जित कर चुके थे
भाव श्रद्धा के जिन्हें हम   सब समर्पित  कर  चुके थे
हो गया  था  इक  जमाना  जिसकी   बीती   बात को
नींद    से   उसने   जगाया   आज   आधी   रात   को

महक मधु स्मृतियों   की   ऐसी    सांसों  में समायी
जैसे मादक सुरभि कोई  सीधी  चन्दन बन  से आई
गीत गूंजे    निर्झरों    के   हर   तरफ   वातावरण में
रंग   सारे   भर गया   मधुमास   फिर  पर्यवारण में
दे गया    दो   प्राण   फिर   मेरे  हृदय  आघात    को
 नींद    से    उसने   जगाया    आज    आधी रात को

पाट ना  पाया   विषमता  की  कोई  इन  खाइयों को
हम पकड़ते  रह  गये  बस   दौड़ती   परछाईयों  को
छीन लो   तुम  सारी  दौलत    यह मेरे सारे खजाने  
पर मुझे  लौटादो  फिर से प्यार  के  दो  पल  सुहाने  
मिल गया फिर एक सावन  नैयनो  को बरसात को 
नींद से    उसने    जगाया    आज   आधी    रात को 
                                                   सुभाष मलिक

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