Tuesday, September 21, 2010

बचपन याद बहुत आता है

बचपन  याद   बहुत  आता  है
जिसको  मैंने  समझा  अपना
टूट  गया   जाने   कब  सपना
लोट - पोट   माटी    में  रहना
धूसित  करना जो कुछ पहना
हठ करना  विचलित हो जाना
थक  कर  माटी  में  सो  जाना
बरखा   पानी  कागज   कस्ती
धमा  चोकड़ी  दिन भर मस्ती
मोसम   गर्मी    का   या   ठंडा
चोर    सिपाही    गुल्ली    डंडा
मन  को  उन्मन  कर जाता है
बचपन   याद   बहुत  आता है

तख्ती  बस्ता  हाथ में कुल्हड़
गलियारों   में   मचता हुल्लड़
मेडम    प्यारी    दूध    मलाई
टीचर  सब  बे   रहम   कसाई
काम   न  आते    थे    हथकंडे
कापी   पर  मिलते   बस  अंडे
पापा    करते     खूब    पिटाई
प्यार   बांटती     दादी     ताई
राग     बसंती    सावन   झूले
हम फागुन के  रंग   न    भूले
मक्खन  मट्ठा   दूध   कटोरी
अम्मा    की  वह  मीठी  लोरी
जब  जब  मेरा   मन  गाता है
बचपन   याद  बहुत  आता  है 
                     सुभाष मलिक 

2 comments: