Thursday, December 30, 2010

नव वर्ष की शुभःकामनाएं

आ गई है, शुभ घड़ी, उत्कर्ष की
आपको शुभ कामना नव वर्ष की

द्वेष मिट जाए हृदय में प्यार हो
उत्साह उमंगों से भरा संसार हो
लोभ,लालच की मिटे हर कामना
अंतःकरण में हो समर्पण भावना
बांट दो सौगात   सबको हर्ष की
आपको शुभ कामना नव वर्ष की

स्वप्न पूरे हों, सभी  की आस के
कुछ नए अनुबंन्ध हों विश्वास के
मन हो नव निर्माण नव संघर्ष में
ना रहे धन की कमी, नव वर्ष में
दूर हों, चिन्ताएं खाली  पर्स  की
आपको शुभ कामना, नव वर्ष की

उपजे भलाई की  सभी मे भावना
साकार हों  समृद्धि की, सम्भावना
दूर हो  जग से  घटा संन्ताप की
हो मधुर अमृत सी वाणी आप की
संवेदना  उर  से  बहे  आदर्श की
आपको शुभ कामना, नव  वर्ष की

घट सुधा से हों छला-छल प्यास के
मंजिलों पर हों कदम, अभ्यास के
अंह, निष्ठुरता,  कुटिलता, दूर  हो
स्नेह सरसता के कलश, भरपूर हों
बात जीवन मे हो अब निष्कर्ष की
आपको  शुभ कामना, नव वर्ष की
                    सुभाष मलिक

Wednesday, December 8, 2010

फीलगुड़ मौसम आया रे

फीलगुड़ मौसम आया रे
आतंकी बन गया पड़ोसी दुनिया देख रही थी
अमरीका के आगे दिल्ली घुटने टेक रही थी
जार्ज मिलाते फिरते थे भारत से बुश की राशी
दो दो बार हुई थी इनकी नंगा कर तालाशी
फिर भी यही बताया रे
फील गुड़ मौसम आया रे
सिने तारिकाओ का अब संसद तक जादू फैला
मंत्री जी भी काम छौड कर गाते लैला लैला
देख जया हेमा को जागी बूढे दिल मे आस
दिल्ली वासी बुझा रहे सब रूपसुधा से प्यास
खुली जुल्फों का साया रे
फील गुड़ मौसम आया रे
लोकतंत्र रह गया देश में सिर्फ चुनावी मेला
राजनीती बन गई अखाड़ा संसद बनी तबेला
कुर्ता धोती फटा हुआ और मचा रहे हुड़्दंग
किसकी गलती से दिल्ली तक पहुँच गए जयचन्द
इन्होने देश चबाया रे
फील गुड़ मौसम आया रे
आटा चावल दाल पे जमकर बैठ गई महगांई
छोंक लगाती है पानी से शब्जी में भोजाई
आग लगी है बाजारों मे देश मे हाहा कार
शक्कर गुड़ को चबा गए है घर बैठे मक्कार
कोई कुछ समझ ना पाया रे
फील गुड़ मौसम आया रे
सुभाष मलिक