Tuesday, September 9, 2014

गाँव

बहुत सुंदर बहुत मोहक तुम्हारा शहर है लेकिन
मुझे वह गाँव की गलियां पुरानी याद आती हैं 
चहकते खेत, लहराती हुई फसलें; गरजते घन,
उन्ही के बीचमें फिर झूमता गाता हुआ ये मन 
लिखी जो कलपनाओं पर कहानी याद आती है 
मुझे वह गाँव की गलियां पुरानी याद आती हैं
सुभाष मलिक

Saturday, September 6, 2014

संदेह की दीवार

दुख सारे खुद मिट जाएगें तुम यूं ही मुस्काते रहना | 
दुनिया मधुमय हो जाएगी मधुर कंठ से गाते रहना |
यें संदेह भरी दीवारें टूट के एक दिन गिर जाएगीं ,
कभी कभी तुम भूले से ही गली हमारी आते रहना ||
सुभाष मलिक

Saturday, August 9, 2014

चलते - चलते

टूटे कितने स्वप्न सलौने इन पलकों पर पलते पलते
मेरी श्रद्धा के दीपक भी अस्त हुए सब जलते जलते
अर्पित होने की तृष्णा मे जीवन बीता सोच सोच कर
काश किसी से हम भी यूँ ही टकरा जाते चलते चलते
सुभाष मलिक
L

Sunday, July 6, 2014

लालच

विषघट भरी छलाछल दुनिया चलना संभल संभल | 
डगर- डगर यहाँ झूठ भरा है, पग-पग पर है छल |
चकाचौंध की मृगतृष्णा में, पल- पल भटक रहा रे 
अभी समय है लालच की यह ,गठरी छोड निकल ||
सुभाष मलिक

व्यवस्था

प्रशासक सब गूंगे बहरे, शासक बैठा मौन 
निर्धन भूखी जनता की फरियाद सुनेगा कौन 
वेद व्यास भी भौचक्के हैं देख भरत का भारत 
चीर उतारे खडी द्रौपदी, वाह- वाह करते द्रौन 
सुभाष मलिक

व्यथा

तुमने लाखों चढी सीढियां मै एक पग भी बढ ना पाया 
मद से भरे तेरे नयनों पर, छंद, बंद, कुछ गढ ना पाया 
उल्टे- पल्टे ,ग्रंथ बहुत से, दुनिया भर की पढी किताबें
लेकिन मै नादान तुम्हारे, मन की भाषा पढ ना पाया ||
सुभाष मलिक

मौसाम

आँख दिखाकर मेघा भागे 
जून, जौलाई रहे अभागे 
सावन से रूठी पुरवाई 
झुलस गई सारी तरूणाई
खेत किसानी प्यासी तरसे 
आग बरसती है अंबर से 
सूखे पौखर भर दो मौला 
अब तो वर्षा करदो मौला 
सुभाष मलिक

मुक्तक

पिता का पुत्र को संदेश 

पनप रही जो विद्यालयों में उस गुंडागर्दी से बचना 

घूस कमीशन का है फैशन तुम खाकी वर्दी से बचना 
दगाबाज महा दुष्ट फरेबी, अपनेपन की बात करेगें 
जिसमें छल व कपट भरा हो ऐसी हमदर्दी से बचना
सुभाष मलिक

Saturday, June 14, 2014

अंतर

है  तुम्हारे  महल   से  भी   खूबसूरत |
देखलो  आकर  कभी छप्पर  हमारा ||

तुम बुझाओ प्यास अधरों की सुधा से | 
आँसुओं   से   है  कलेजा  तर  हमारा || 

तुम हकीमों का लिए वरदान बैठे हो |
है  भरा  शुभचिंतकों  से  घर हमारा || 


Monday, April 14, 2014

सविता का दास

ऐ सविता के दास तुझेतो जलना होगा
पूरा जीवन नागफनी पर चलना होगा
फूलों के बिस्तर का स्वप्न देखने वाले
तुझको काँटों की गोदी में पलना होगा

                               सुभाष मलिक