सम्बन्धों में जाने कितनी., घात दिया करते हैं
फिर भी हमसे अपनेपन की बात किया करते हैं
मुह में घास दबा कर खुद को शाकाहारी कहते
बगुले भगत बने पानी में नजर गड़ाये रहते
आस्तीन में छुपकर रहते यें जहरीले विषधर
जिसने छत की छाँव इन्हें दी ठोकर खाई दर दर
चक्रव्यूह में कौरव दल का , साथ दिया करते हैं
फिर भी हमसे अपनेपन की बात किया करते हैं
क्या इनसे उम्मीद करें हम क्या इनसे अभिलाषा
जयचन्द जाफर कब समझें गौतम गांधी की भाषा
ये कब जाने पीर किसी की क्या आंसू क्या आंहें
इनकी बस विश्वासघात से भरी हुई सब राहें
यें शकुनी को भी चौसर में मत दिया करते हैं
फिर भी हमसे अपनेपन की बात किया करते हैं
वो नफरत की फसल उगाते अब विपरीत हमारे
जिनकी खातिर हम अपनी जीती बाजी भी हारे
इतने धोखे मिले वफा की अब कोई आस नहीं है
अपने साये पर भी अब होता विश्वास नहीं है
दुश्मन के हाथों में अपने हाथ दिया करते है
फिर भी हमसे अपनेपन की बात किया करते हैं
अमर्यादित रिश्तों पर तो भाषण खूब सुनाते
मिल जाए संकेत रूप रस चुपके से पी जाते
नभ को छूने के सपने भी इनके दिल में पलते
वैसे समतल धरती पर भी रेंग रेंग कर चलते
जख्मों पर तो तेजाबी बरसात किया करते हैं
फिर भी हमसे अपनेपन की बात किया करते हैं
सुभाष मलिक
v v good
ReplyDeletevinit
it is a very nice poem
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