तुमने जब मुस्का कर देखा
मन मेरा मधुमास हो गया
मौसम ने बदली है करवट
पतझर को विश्वास हो गया
झम से बरसा झूम के सावन
पुरवा ने मल्हार सुनाये
भावों की बंजर भूमि पर
रिश्तों के चन्दन उग आए
फैला है उन्माद छिटक कर
सांसों को ऐहसास हो गया
तुमने जब मुस्का कर देखा
मन मेरा मधुमास हो गया
मन के आंगन धवल चांदनी
जाने कौन खींच कर लाया
फैली जीवन दोपहरी पर
संबन्धों की शीतल छाया
दूर किनारा था किस्ती से
अनायास ही पास हो गया
तुमने जब मुस्का कर देखा
मन मेरा मधुमास हो गया
स्वागत छंद पढ़े प्राणों ने
हृदय से छलकी व्याकुलता
फूट रही पलकों से निर्झर
मेरे अंतस की आकुलता
धूप सुनहरी दोपहरी की
बासन्ती आकाश हो गया
तुमने जब मुस्का कर देखा
मन मेरा मधुमास हो गया
करता हूँ मै तुम्हे समर्पित
यह सारा संसार तुम्हारा
जीवन का हर पल करता है
हृदय से आभार तुम्हारा
नयनो का संकेत वो प्यारा
मरुथल में उल्लास बो गया
तुमने जब मुस्का कर देखा
मन मेरा मधुमास हो गया
सुभाष मलिक
बहुत खूब... कविता ... वन्स मोर कहकर खुद ही दुबारा पढ़ ली.
ReplyDeleteNice work.Keep up the good work
ReplyDeletebahut hi acchi kavita hai........... i read it thrice
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