Saturday, September 25, 2010

मधुमास

तुमने जब  मुस्का कर  देखा
मन मेरा   मधुमास  हो गया  
मौसम   ने   बदली है करवट
पतझर को विश्वास हो गया 

झम से बरसा झूम के सावन
पुरवा    ने    मल्हार      सुनाये  
भावों की     बंजर    भूमि   पर
रिश्तों    के   चन्दन उग आए
फैला    है उन्माद छिटक कर
सांसों   को    ऐहसास  हो गया
तुमने जब  मुस्का कर  देखा
मन मेरा   मधुमास  हो गया  

मन  के आंगन धवल चांदनी
जाने  कौन   खींच   कर लाया
फैली     जीवन   दोपहरी   पर
संबन्धों   की   शीतल    छाया
दूर    किनारा  था  किस्ती  से
अनायास    ही पास हो गया
तुमने जब  मुस्का कर  देखा
मन मेरा   मधुमास  हो गया  

स्वागत छंद   पढ़े    प्राणों ने
हृदय से छलकी   व्याकुलता
फूट रही    पलकों  से निर्झर
मेरे  अंतस  की     आकुलता
धूप   सुनहरी     दोपहरी    की
बासन्ती   आकाश    हो   गया
तुमने जब  मुस्का कर  देखा
मन मेरा   मधुमास  हो गया  

करता हूँ मै   तुम्हे   समर्पित
यह   सारा     संसार    तुम्हारा
जीवन का हर पल करता है
हृदय   से     आभार  तुम्हारा
नयनो का संकेत वो प्यारा
मरुथल में उल्लास बो गया
तुमने जब  मुस्का कर  देखा
मन मेरा   मधुमास  हो गया 

                       सुभाष मलिक 

3 comments:

  1. बहुत खूब... कविता ... वन्स मोर कहकर खुद ही दुबारा पढ़ ली.

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  2. Nice work.Keep up the good work

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  3. bahut hi acchi kavita hai........... i read it thrice

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