Tuesday, September 21, 2010

हार नहीं मानी

वरदान    मुझे   कोई  मिला   नहीं
कोई  कमल  भाग्य में  खिला नहीं
लपटों    पर    जीवन     जीता   हूँ 
मैं    सुधा   नहीं    विष   पीता   हूँ
सौ    बार     निराशा    ने     मोड़ा
उम्मीदों      ने      नाता       तोडा 
इस    क्रूर   जगत   के    हाथों  से
विष्वास    में   लिपटी    घातों   से
सौ  बार   मिली     मुझको   हानि
पर    मैंने      हार     नहीं    मानी 

सारा      यौवन     श्रंगार      लुटा
मै    गिर   गिर  सौ   सौ बार उठा
जीवन   के   इस   टेढ़े    पथ   पर
चढकर    पुरुषार्थ     के  रथ   पर
पल   पल    आगे    बढ़ता   आया
मंजिल    मंजिल   चढ़ता    आया
इस    आडम्बर    परिवर्तन    पर
हाहाकारों    के       नर्तन      पर
जागने    की   अपनी    मनमानी
पर   मैंने     हार     नहीं     मानी

मन   के   भीतर    उत्साह   लिए
कुछ    परिवर्तन   की  चाह  लिए
मै  कुश    कंटक   दलता   दलता
निर्भय     आगे    चलता   चलता
शोषक    जग   से   टकराता   हूँ
हर   गीत    विजय   का गता  हूँ
रूढ़ी   की    अंतिम    सांसो    पर
इन   अथक    मेरे   प्रयासों    पर
दुनिया    की     देखी      नादानी
पर     मैंने      हार   नहीं   मानी

वैभव     से      मेरी   प्रीत   नही
जीवन    में    सुर  संगीत   नही
मै      झंझाओं     के  बीच  पला
प्रलय  को    लेकर    साथ   चला
मंजिल  तक   पहुंचा   रुका  नही
स्वाभिमानी    था     झुका   नही 
वह   भूख   प्यास  के  बीच  पली
मंजिल   तक   मेरे   साथ   चली
बाधा   अन   सुलझी   अनजानी
पर     मैंने     हार    नहीं   मानी

रिम   झिम   सावन  बौछारों  में
मादक   पायल     झनकारों    में
तपते    अधरों    की   लाली   पर
या  मृग   नयनो  की  प्याली  पर
यह  मन  उन्मन  हो  सकता  था
कर्तव्य    पथ   खो    सकता  था
वह  सौरभ    सुरभि   का  झोंका
उसने   कितना    मुझको   रोका
आखोँ   में   भर  भर  कर  पानी
पर    मैंने    हार    नही     मानी
                    सुभाष मलिक

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