वरदान मुझे कोई मिला नहीं
कोई कमल भाग्य में खिला नहीं
लपटों पर जीवन जीता हूँ
मैं सुधा नहीं विष पीता हूँ
सौ बार निराशा ने मोड़ा
उम्मीदों ने नाता तोडा
इस क्रूर जगत के हाथों से
विष्वास में लिपटी घातों से
सौ बार मिली मुझको हानि
पर मैंने हार नहीं मानी
सारा यौवन श्रंगार लुटा
मै गिर गिर सौ सौ बार उठा
जीवन के इस टेढ़े पथ पर
चढकर पुरुषार्थ के रथ पर
पल पल आगे बढ़ता आया
मंजिल मंजिल चढ़ता आया
इस आडम्बर परिवर्तन पर
हाहाकारों के नर्तन पर
जागने की अपनी मनमानी
पर मैंने हार नहीं मानी
मन के भीतर उत्साह लिए
कुछ परिवर्तन की चाह लिए
मै कुश कंटक दलता दलता
निर्भय आगे चलता चलता
शोषक जग से टकराता हूँ
हर गीत विजय का गता हूँ
रूढ़ी की अंतिम सांसो पर
इन अथक मेरे प्रयासों पर
दुनिया की देखी नादानी
पर मैंने हार नहीं मानी
वैभव से मेरी प्रीत नही
जीवन में सुर संगीत नही
मै झंझाओं के बीच पला
प्रलय को लेकर साथ चला
मंजिल तक पहुंचा रुका नही
स्वाभिमानी था झुका नही
वह भूख प्यास के बीच पली
मंजिल तक मेरे साथ चली
बाधा अन सुलझी अनजानी
पर मैंने हार नहीं मानी
रिम झिम सावन बौछारों में
मादक पायल झनकारों में
तपते अधरों की लाली पर
या मृग नयनो की प्याली पर
यह मन उन्मन हो सकता था
कर्तव्य पथ खो सकता था
वह सौरभ सुरभि का झोंका
उसने कितना मुझको रोका
आखोँ में भर भर कर पानी
पर मैंने हार नही मानी
सुभाष मलिक
it si a very very nice poem
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