Sunday, July 6, 2014

लालच

विषघट भरी छलाछल दुनिया चलना संभल संभल | 
डगर- डगर यहाँ झूठ भरा है, पग-पग पर है छल |
चकाचौंध की मृगतृष्णा में, पल- पल भटक रहा रे 
अभी समय है लालच की यह ,गठरी छोड निकल ||
सुभाष मलिक

व्यवस्था

प्रशासक सब गूंगे बहरे, शासक बैठा मौन 
निर्धन भूखी जनता की फरियाद सुनेगा कौन 
वेद व्यास भी भौचक्के हैं देख भरत का भारत 
चीर उतारे खडी द्रौपदी, वाह- वाह करते द्रौन 
सुभाष मलिक

व्यथा

तुमने लाखों चढी सीढियां मै एक पग भी बढ ना पाया 
मद से भरे तेरे नयनों पर, छंद, बंद, कुछ गढ ना पाया 
उल्टे- पल्टे ,ग्रंथ बहुत से, दुनिया भर की पढी किताबें
लेकिन मै नादान तुम्हारे, मन की भाषा पढ ना पाया ||
सुभाष मलिक

मौसाम

आँख दिखाकर मेघा भागे 
जून, जौलाई रहे अभागे 
सावन से रूठी पुरवाई 
झुलस गई सारी तरूणाई
खेत किसानी प्यासी तरसे 
आग बरसती है अंबर से 
सूखे पौखर भर दो मौला 
अब तो वर्षा करदो मौला 
सुभाष मलिक

मुक्तक

पिता का पुत्र को संदेश 

पनप रही जो विद्यालयों में उस गुंडागर्दी से बचना 

घूस कमीशन का है फैशन तुम खाकी वर्दी से बचना 
दगाबाज महा दुष्ट फरेबी, अपनेपन की बात करेगें 
जिसमें छल व कपट भरा हो ऐसी हमदर्दी से बचना
सुभाष मलिक