अभिलाषा के नीड़ घरोंदे हवन कुण्ड में जला दिए हैं
शब्द, छंद, रस. गंध, तुम्हारे आँसुवों में डुबा दिए है
हृदय से संकोच मिटा कर चैन से तुम जीलेना साथी
हमने सारे पत्र .तुम्हारे , गंगा जी में बहा दिए है
सुभाष मलिक
badi achi kavita h
ReplyDeletebahut acchi hai sir
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