बेईमानी गुण्डागर्दी का जहर घुला परिवेश मे
एक एक के नाम पे मिलते अरबों के घोटाले
घूस खोर मक्कार बंने अब भारत के रखवाले
भूख पे भाषण देने वाले भोग लगाते छप्पन
इनमें से है कोई तेलगी और कोई वीरप्पन
धन जनता का लूट लूट कर भेज रहे प्रदेश में
कैसे जीवन रहे सुरक्षित गांधी तेरे देश में
घर के भीतर भी अब दहशत रहती है मक्कारों की
पंचायत और पुलिस चौकियां जेब में ठेकेदारों की
दो पाटों में जान फंसी है दुर्गे माँ चामुण्डा
आगे खद्दर धारी पीछे वर्दी वाला गुण्डा
पाखण्डी भी घूम रहे हैं अब साधु के वेष में
कैसे जीवन रहे सुरक्षित गांधी तेरे देश में
बेईमानी गुण्डागर्दी का जहर घुला परिवेश मे
कैसे जीवन रहे सुरक्षित गांधी तेरे देश में
सुभाष मलिक
truth
ReplyDeleteReal poim
ReplyDeleteDevpal
kavita me sachhai hai
ReplyDeleteved prakash
बहुत सुंदर - सच और सही - प्रशंसनीय रचना
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति| धन्यवाद|
ReplyDeleteलेखन के मार्फ़त नव सृजन के लिये बढ़ाई और शुभकामनाएँ!
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आलेख-"संगठित जनता की एकजुट ताकत
के आगे झुकना सत्ता की मजबूरी!"
का अंश.........."या तो हम अत्याचारियों के जुल्म और मनमानी को सहते रहें या समाज के सभी अच्छे, सच्चे, देशभक्त, ईमानदार और न्यायप्रिय-सरकारी कर्मचारी, अफसर तथा आम लोग एकजुट होकर एक-दूसरे की ढाल बन जायें।"
पूरा पढ़ने के लिए :-
http://baasvoice.blogspot.com/2010/11/blog-post_29.html
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