Monday, November 29, 2010

गांधी तेरे देश में

बेईमानी गुण्डागर्दी का जहर घुला परिवेश मे
कैसे जीवन रहे  सुरक्षित  गांधी तेरे देश में


एक एक के नाम पे मिलते अरबों के घोटाले
घूस खोर मक्कार बंने अब भारत के रखवाले
भूख पे भाषण देने वाले भोग लगाते छप्पन
इनमें से है कोई तेलगी और  कोई वीरप्पन
धन जनता का लूट लूट कर भेज रहे प्रदेश में
कैसे जीवन रहे  सुरक्षित  गांधी तेरे देश में

घर के भीतर भी अब दहशत रहती है मक्कारों की
पंचायत और पुलिस चौकियां जेब में ठेकेदारों की
दो पाटों में जान फंसी है  दुर्गे माँ चामुण्डा
आगे  खद्दर  धारी  पीछे  वर्दी वाला गुण्डा
पाखण्डी भी घूम रहे हैं अब साधु के वेष में
कैसे जीवन रहे  सुरक्षित गांधी  तेरे देश में

बेईमानी गुण्डागर्दी का जहर घुला परिवेश मे
कैसे जीवन रहे  सुरक्षित  गांधी तेरे देश में
                       सुभाष मलिक

7 comments:

  1. kavita me sachhai hai
    ved prakash

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  2. बहुत सुंदर - सच और सही - प्रशंसनीय रचना

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  3. बहुत सुन्दर प्रस्तुति| धन्यवाद|

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  4. लेखन के मार्फ़त नव सृजन के लिये बढ़ाई और शुभकामनाएँ!
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    आलेख-"संगठित जनता की एकजुट ताकत
    के आगे झुकना सत्ता की मजबूरी!"
    का अंश.........."या तो हम अत्याचारियों के जुल्म और मनमानी को सहते रहें या समाज के सभी अच्छे, सच्चे, देशभक्त, ईमानदार और न्यायप्रिय-सरकारी कर्मचारी, अफसर तथा आम लोग एकजुट होकर एक-दूसरे की ढाल बन जायें।"
    पूरा पढ़ने के लिए :-
    http://baasvoice.blogspot.com/2010/11/blog-post_29.html

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  5. इस नए चिट्ठे के साथ हिंदी ब्‍लॉग जगत में आपका स्‍वागत है .. नियमित लेखन के लिए शुभकामनाएं !!

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