Wednesday, December 8, 2010

फीलगुड़ मौसम आया रे

फीलगुड़ मौसम आया रे
आतंकी बन गया पड़ोसी दुनिया देख रही थी
अमरीका के आगे दिल्ली घुटने टेक रही थी
जार्ज मिलाते फिरते थे भारत से बुश की राशी
दो दो बार हुई थी इनकी नंगा कर तालाशी
फिर भी यही बताया रे
फील गुड़ मौसम आया रे
सिने तारिकाओ का अब संसद तक जादू फैला
मंत्री जी भी काम छौड कर गाते लैला लैला
देख जया हेमा को जागी बूढे दिल मे आस
दिल्ली वासी बुझा रहे सब रूपसुधा से प्यास
खुली जुल्फों का साया रे
फील गुड़ मौसम आया रे
लोकतंत्र रह गया देश में सिर्फ चुनावी मेला
राजनीती बन गई अखाड़ा संसद बनी तबेला
कुर्ता धोती फटा हुआ और मचा रहे हुड़्दंग
किसकी गलती से दिल्ली तक पहुँच गए जयचन्द
इन्होने देश चबाया रे
फील गुड़ मौसम आया रे
आटा चावल दाल पे जमकर बैठ गई महगांई
छोंक लगाती है पानी से शब्जी में भोजाई
आग लगी है बाजारों मे देश मे हाहा कार
शक्कर गुड़ को चबा गए है घर बैठे मक्कार
कोई कुछ समझ ना पाया रे
फील गुड़ मौसम आया रे
सुभाष मलिक

2 comments:

  1. फीलगुड मौसम आया रे... बेहतरीन हास्य रचना.
    मेरी नई पोस्ट 'भ्रष्टाचार पर सशक्त प्रहार' पर आपके सार्थक विचारों की प्रतिक्षा है...
    www.najariya.blogspot.com नजरिया.
    मैं आपका ब्लाग फालो कर रहा हूँ । आप भी कृपया मेरा ये ब्लाग फालो करें । धन्यवाद सहित...

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  2. लोकतंत्र रह गया देश में सिर्फ चुनावी मेला
    राजनीती बन गई अखाड़ा संसद बनी तबेला
    कुर्ता धोती फटा हुआ और मचा रहे हुड़्दंग
    किसकी गलती से दिल्ली तक पहुँच गए जयचन्द
    इन्होने देश चबाया रे
    फील गुड़ मौसम आया रे
    बहुत सुंदर रचना...सीधा कटाक्ष...क्या बात है...

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