Sunday, November 14, 2010

आचरण

जीवन के सुरभित उपवन में,क्यों विष के कांटे बोते हो |
क्षण भर की मृग तृष्णा पर क्यों अपना जीवन खोते हो
यौवन के अल्हड वेगों पर देखो तुम विचलित मत होना
संयम सौरभ से महकादो, इस धरती का कोना - कोना
अर्थ नहीं जीवन का मिटना सुघड़ कपोलों की लाली पर
सागर कब बहका करते हैं, मद से भरी हुई प्याली पर

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