टूटे कितने स्वप्न सलौने इन पलकों पर पलते पलते
मेरी श्रद्धा के दीपक भी अस्त हुए सब जलते जलते
अर्पित होने की तृष्णा मे जीवन बीता सोच सोच कर
काश किसी से हम भी यूँ ही टकरा जाते चलते चलते
सुभाष मलिक
मेरी श्रद्धा के दीपक भी अस्त हुए सब जलते जलते
अर्पित होने की तृष्णा मे जीवन बीता सोच सोच कर
काश किसी से हम भी यूँ ही टकरा जाते चलते चलते
सुभाष मलिक
No comments:
Post a Comment