Monday, November 29, 2010

गांधी तेरे देश में

बेईमानी गुण्डागर्दी का जहर घुला परिवेश मे
कैसे जीवन रहे  सुरक्षित  गांधी तेरे देश में


एक एक के नाम पे मिलते अरबों के घोटाले
घूस खोर मक्कार बंने अब भारत के रखवाले
भूख पे भाषण देने वाले भोग लगाते छप्पन
इनमें से है कोई तेलगी और  कोई वीरप्पन
धन जनता का लूट लूट कर भेज रहे प्रदेश में
कैसे जीवन रहे  सुरक्षित  गांधी तेरे देश में

घर के भीतर भी अब दहशत रहती है मक्कारों की
पंचायत और पुलिस चौकियां जेब में ठेकेदारों की
दो पाटों में जान फंसी है  दुर्गे माँ चामुण्डा
आगे  खद्दर  धारी  पीछे  वर्दी वाला गुण्डा
पाखण्डी भी घूम रहे हैं अब साधु के वेष में
कैसे जीवन रहे  सुरक्षित गांधी  तेरे देश में

बेईमानी गुण्डागर्दी का जहर घुला परिवेश मे
कैसे जीवन रहे  सुरक्षित  गांधी तेरे देश में
                       सुभाष मलिक

Sunday, November 14, 2010

आचरण

जीवन के सुरभित उपवन में,क्यों विष के कांटे बोते हो |
क्षण भर की मृग तृष्णा पर क्यों अपना जीवन खोते हो
यौवन के अल्हड वेगों पर देखो तुम विचलित मत होना
संयम सौरभ से महकादो, इस धरती का कोना - कोना
अर्थ नहीं जीवन का मिटना सुघड़ कपोलों की लाली पर
सागर कब बहका करते हैं, मद से भरी हुई प्याली पर

Thursday, November 4, 2010

सर झुकाना छोड दो

विष उगलती रुढियों की बेड़ियों को तोड़ दो
प्रतिशोध की अगन में प्रेम रस निचोड़ दो
गिर ना जाए पैर पर किसी के पगड़ी आपकी
हर किसी के सामने ये सर झुकाना छोड दो
सुभाष मलिक